ज्योतिबा


“ऐसा बोध प्राप्त होता है
ज्योतिबा के सम्पर्क में
मन के भीतर सहेजकर रखती हूं,
मैं सावित्री ज्योतिबा की।

मेरे जीवन में ज्योतिबा स्वांनद समग्रआनंद
जिस तरह होता है शहद
फूलों, कलियों में।


ज्योतिबा को सलाम
ह्रदय से करतेहैं
ज्ञान का अमृत हमें वे देते हैं,
और जैसे हम
पुनर्जीवित होत जाते हैं

महान ज्योतिबा,
दीन दलित, शूद्र- अतिक्षुद्र
तुम्हें पुकारते हें
बातें ज्योतिबा की सुन कहे सावित्री
करे इच्छा रात-रजनी
रहे प्रकृति सूरज बिन
रहे अंधियारे में हमेशा-हमेशा
उल्लुओं की इच्छा होती है ऐसी
करे सूरज को, गाली-गलौच और दे शाप

~ सावित्री बाई फुले, काव्यफूल