महार जाग गए हैं


सच कहती हो तुम, छट गया अंधकार
शूद्रादि महार जाग गए हैं।

दीन दलित अज्ञानी रहकर दुख सहे
पशु भांति जीते रहे
यह थी उल्लुओं की इच्छा ।

टोकरी से ढका रखने पर भी
मुर्गा देता है बांग
और लोगों को देता है, सुबह होने की खबर।

शूद्र लोगों के क्षितिज के पर,
ज्योतिबा है सूरज
तेज से पूर्ण, अपूर्व, उदय हुआ है।

~ सावित्री बाई फुले, काव्यफूल