पीला चम्पा
हल्दी रंग का
बाग में खिला,
ह्रदय के भीतर तक बस गया
गुलाब का फूल और फूल कनेर का
रंग- रूप दोनो का एक- सा
एक आम आदमी, दूसरा राजकुमार
गुलाब की रौनक, देसी फूलो से उसकी उपमा कैसी?
तितलियाँ रंग-बिरंगी
बहुत ही सुंदर
उनकी आँखे चमकदार, सतरंगी
उनकी हंसी बातुनी
पंख रेशमी उनकी देह पर
छोटे-बड़े, पीले रंग के
पंख मुड़े हुए, किन्तु भरे उड़ान आकाश में
उनका रूप-रंग मनोहर।
तितलियाँ देख-देखमैं खो गयी
बिसर गई अपने आप को
फूलों की कलियाँ
कोमल, अति सुन्दर
आतुर होकर तितलियों को
पास बुलाती
राह देखती उनकी
आ जाओ दौड़-दौड़ कर तितली
कहती मन ही मन फूलों की कलियाँ।
उड़कर आ पहुँची तितलियाँ
फूलों के पास
इकट्ठा कर शहद पी लिया
मुरझा गयी सारी कलियाँ।
फूलोंकी कलियों का रस चखकर
ढूँढा कहीं और ठिकाना।
रीत है यही दुनियाँ की
स्वार्थ और पलभर के हैं रिश्ते
देख दुनियां की रीत
हो जाती हूँ मैं चकित।
मानव जीवन को करे समृद्ध
भय चिंता सभी छोड़कर आओ,
खुद जिएं और औरों को जीने दें।
मानव-प्राणी, निसर्ग-सृष्टि
एक ही सिक्के के दो पहलू
एक जानकर सारी जीवसृष्टि को
प्रकृति के अमूल्य निधि मानव की
चलो, कद्र करें।
~ सावित्री बाई फुले, काव्यफूल