बावन्नकशी सुबोधरत्नाकर


सहज काव्य रचना करती हूँ
भुजंग प्रयात छंद में
मन के भीतर रचती हूँ पंक्तियाँ
फिर उतारती हूँ कागज़ पर गीत
पति ज्योतिबा को
वो सारे गीत अर्पण करती हूं
आदर के साथ
अब वे यहां नहीं हैं इस जगत में
किन्तु हमेशा रहते हैं मेरे चिंतन में में॥2॥

परिक्रमा करे चेलियां मेले में शंकराचार्य की
प्रचार करे रूढ़ियों का मूर्खता से
रीति-रिवाज का करो सब अनुशासन से पालन ॥9॥

मनुस्मृति की कर रचनामनु ने
किया चातुर्वर्ण का विषैला निर्माण
उसकी अनाचारी परम्परा हमेशा चुभती रही
स्त्री और सारे शूद्र गुलामी की गुफा में हुए बन्द
पशु की भाँति शूद्र बसते आए दड़बों में॥13॥

पेशवा ने पाँव पसारे
उन्होंने सत्ता, राजपाट संभाला
और अनाचार, शोषण अत्याचार होता देखकर
शूद्र हो गए भयभीत
थूक करे जमा
गले में बंधे मटके में
और रास्तों पर चलने की पाबंदी
चले धूल भरी पगडंडी पर,
कमर पर बंधे झाड़ू से मिटाते
पैरों के निशान॥17॥

ज्ञानी बनता देख भटलोग बरगलाते
देखो, कैसे हाँके ईसा भेड़-बकरियों को
झूठे बढ़ा-चढ़ाकर॥27॥

मुझे और आऊ को उन्होंने ही
पढ़ना-लिखना सिखाया
नारी शिक्षा की भव्य घटना की
रखी नींव ज्योतिबा ने॥38॥

घर के कुएं से प्यासे अतिशूद्रों के लिए
पानी पिलाने और भरने की
अनोखी हुई शुरूआत
इन्सानों को दिखाया ज्योतिबा ने सदमार्ग
पढ़ाया दलितों को
अपने अधिकारों का पाठ
जोतिबा थे युगचेतना के आविष्कारक॥41॥

करते रहे बयान जोतिबा सच्चाई
कि अंग्रेजी मां का दूध पीकर
बलवान बनो
और पूरे संकल्प से करते रहे प्रयास
लगातार शूद्रों की शिक्षा-प्राप्ति के
शूद्रों के संसार में
सुख-शांति समाधान के लिए॥46॥

* * *
पढ़ा इतिहास
सत्य असत्य ढूंढकर सच्चाई
का बोध ले

यद्यपि ज्योतिबा का जन्म हुआ वहां
जिन्हें शूद्र माली के नाम से
पुकारा जाता था
सभी दलित-शोषित उन्हें माली जाति के नहीं
अपना मुक्तिदाता मानते थे
महान जोतिबा अमर हो गए
प्रणाम करती हूँ ऐसे जोतिबा को॥50॥

मेरी कविता को पढ़-सुनकर
यदि थोड़ा भी ज्ञान हो जाये प्राप्त
मैं समझूंगी मेरा परिश्रम सार्थक हो गया
मुझे बताओ सत्य निडर होकर
कि कैसी हैं मेरी कविताएं
ज्ञानपरक, यथार्थ, मनभावनया अद्भुत
तुम ही बताओ॥52॥

~ सावित्री बाई फुले, बावन्नकशी सुबोधरत्नाकर (१८८२)